G-20 Summit

G-20 Summit: जी-20 शिखर सम्मेलन: आर्थिक दिक्कतों को खत्म करने पर हो काम 

Editorial

G-20 Summit

G-20 Summit: जी-20 के शिखर सम्मेलन में भारत की मौजूदगी ने दुनिया को देश की बढ़ती ताकत का अहसास करा दिया है। यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हुआ है, जब दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है और रूस व यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। इस सम्मेलन के जरिए भारत ने विश्व के समक्ष बतौर नेतृत्वकर्ता की छवि बनाई है, यही वजह है कि जी-20 की अध्यक्षता भी अब भारत को मिल गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narender Modi) ने इस सम्मेलन में नई अर्थव्यवस्था का जिम्मा भारत के कंधों पर (The responsibility of the new economy is on the shoulders of India)  होने की बात कही है, जोकि सच भी है। भारत की अर्थव्यवस्था पर मंदी का असर नहीं दिख रहा है और अन्य देशों की कंगाल अर्थव्यवस्था के एकदम उलट भारत में तमाम उद्योग-धंधे विकसित हो रहे हैं और देश में आर्थिक मंदी जैसी बात नहीं है। यह गौरवान्वित करने वाली है और विश्व अब भारत में तमाम संभावनाओं को देख रहा है।
 

भारत एक दिसंबर से अगले एक साल के लिए दुनिया के 20 सबसे प्रभावशाली देशों का नेतृत्व करेगा, यह बात प्रत्येक देशवासी को गर्वित कर रही है। बीते दिनों में भारत ने विदेश नीति के स्तर पर अहम प्रगति की है, अब स्थिति ऐसी है कि अरब देश भी जहां भारत के साथ कारोबार और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाने के इच्छुक हैं, वहीं अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस समेत तमाम देश अब भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को अहम मानते हुए नए सिरे से अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहना रहे हैं। यह भी खूब है कि जिस जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान, भारत के खिलाफ छदम युद्ध चलाए हुए है, उसके संबंध में अब दुनिया के देश पाकिस्तान की नहीं सुन रहे। ऐसा अनुच्छेद 370 की समाप्ति (abrogation of article 370) के बाद से और सघन हुआ है। विश्व के अनेक देशों के प्रतिनिधियों ने घाटी में बदले हुए हालात को देखा है। दुनिया के देशों के लिए इस समय सबसे बड़ी जरूरत आर्थिक दिक्कतों को खत्म करना है। जी-20 बैठक (G-20 meeting) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना बेहद प्रासंगिक है कि कोरोना काल के बाद के हालात में नए वल्र्ड ऑर्डर की रचना करना अब भारत के कंधों पर है। दरअसल, जी-20 की यह अध्यक्षता मिलना वैश्विक फलक पर जहां भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है, वहीं अगला एक साल देश के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण और अवसरों से भरा दोनों ही होने जा रहा है।  
 

जी-20 की बैठक में अगर रूस और यूक्रेन युद्ध छाया रहा तो इसके भी मायने हैं। यूक्रेन जी-20 का सदस्य नहीं है, लेकिन फिर भी यूक्रेन के राष्ट्रपति को बैठक को संबोधित करने दिया गया। इस समय दुनिया दो भागों में स्पष्ट रूप से बंट गई है और जी-20 में दोनों ही गुटों के समर्थक देश शामिल हैं। हालांकि भारत एक ऐसी स्थिति में है जो पश्चिमी देशों और रूस दोनों के साथ ही घनिष्ठ संबंध रखता है। यही वजह है कि पिछले दिनों पश्चिमी मीडिया ने जोर देकर कहा था कि भारत यूक्रेन युद्ध में शांति कराने की क्षमता रखता है। पिछले दिनों पीएम मोदी ने जी-20 का लोगो, थीम और वेबसाइट जारी करते हुए दुनिया के सामने भारत की प्राथमिकताओं की ओर संकेत दिया था। भारत 1 दिसंबर से शुरू हो रहे कार्यकाल में 200 कार्यक्रम आयोजित कराने जा रहा है। अब जी-20 की अध्यक्षता (Front of G-20) के दौरान भारत अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर जोर देगा तो इसका अभिप्राय विश्व समाज के समक्ष यह होगा कि देश नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार है। ऐसा तब ही होता है, जब देश के अंदर शांति हो, केवल तब ही कोई देश विश्व के लिए शांतिदूत बन सकता है।
 

जी-20 (G-20) की अध्यक्षता मिलने के बाद भारत की ओर से उठाए जाने वाले कदमों पर भी मंथन शुरू हो गया है। भारत को एक ऐसा एजेंडा बनाना होगा जो सदस्य देशों के बीच एक सर्वसम्मति से स्वीकार हो। जलवायु परिवर्तन (Climate change) से निपटने के लिए वित्तपोषण एक और क्षेत्र है जहां पर भारत को धनी देशों के साथ मिलकर काम करना होगा। अगले पूरे साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकट में बने रहने की आशंका है। ऐसे में भारत को आईएमएफ, विश्व व्यापार संगठन जैसे संगठनों के साथ मिलकर योजना बनानी होगी। वास्तव में जी-20 की अध्यक्षता (Front of G-20)  मिलना भारत के लिए मील का पत्थर साबित होने जा रहा है, देश इसके लिए पूरी तरह सक्षम है और यह विश्व को नई राह दिखाने वाला अवसर भी साबित होने जा रहा है। 

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